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पांच इंजन… लेकिन डिब्बा वहीं का वहीं-लाल टोपी राजू सोनी

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राजनांदगांव – संस्कारधानी की धरती पर आजकल बड़ा अनोखा रेल हादसा देखने को मिल रहा है। पांच-पांच इंजन की ताकत के बावजूद गाड़ी स्टेशन से हिली ही नहीं। सरकार का “सुपरफास्ट इंजन मॉडल” जनता के लिए “सुपर स्लो लोकल” साबित हो रहा है।

तीन नहीं, पूरे पांच इंजन लगे हैं –1. दिल्ली में भाजपा सरकार,
2. रायपुर में भाजपा सरकार,
3. जिला पंचायत में भाजपा,
4. जनपद में भाजपा,
5. और नगर निगम में भी भाजपा।
इतने सारे इंजन देखकर जनता को लगा था कि अब राजनांदगांव का विकास एक्सप्रेस स्पीड में दौड़ेगा। लेकिन नतीजा? रेल तो धुआं छोड़ रही है, यात्रियों के हाथ में टिकट है, पर गाड़ी वहीं खड़ी है।
नशे में हत्या, बलात्कार, चोरी की वारदातें बढ़ रही हैं। पुलिस “टाइमपास मोड” में है, जैसे किसी ने उसके हाथ पैर रस्सी से बांध दिए हों। स्वास्थ्य विभाग की हड़ताल से मरीज अस्पताल में भी असुरक्षित हैं। बेरोजगारी युवाओं को नशे की ओर धकेल रही है, और सरकार माइक पकड़ कर “अच्छे दिन” का एलान करती जा रही है।
जनता सवाल पूछती है –
“जब पांच इंजन लगे हैं तो ये गाड़ी आखिर किसकी जेब में अटकी है?”
सत्ता में बैठे नेताओं का हाल देखकर लगता है मानो सब एक ही रस्सी से बंधे कठपुतली हैं। आदेश ऊपर से आता है, नीचे तक पहुंचते-पहुंचते मौत हो चुकी होती है। कानून मदारी के डमरू की तरह बज रहा है – आवाज खूब है, असर कुछ नहीं।
संस्कारधानी राजनांदगांव अब अपराधधानी बनने की ओर बढ़ रही है। शराब की खपत रिकॉर्ड तोड़ रही है। पुलिस केवल सलामी लेने तक सिमट गई है, और अधिकारी कमिशन गिनने में व्यस्त हैं। आम जनता बिजली कटौती और महंगाई से पसीना बहा रही है, और आधी नींद शराब में डुबोकर काट रही है।
सच कहें तो समस्या एक ही है – बेरोजगारी। रोजगार के मौके नदारद हैं, युवा हताश होकर गलत राह पकड़ रहे हैं। अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में नशा हर घर का “अतिथि देवो भव” बन जाएगा।

जनता अब पूछ रही है –
“जब पांच इंजन भी गाड़ी नहीं चला पा रहे, तो क्या सचमुच भाजपा सिर्फ बोलने में ही माहिर है?”

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